Menu
blogid : 25184 postid : 1285499

समान नागरिक संहिता एक देश एक कानून

अंतहीन
अंतहीन
  • 13 Posts
  • 6 Comments

आज देश एक बड़े सवाल का सामना कर रहा है और वो सवाल ये है कि अगर हमारा देश एक है, संविधान एक है, मौलिक अधिकार एक हैं, प्रधानमंत्री एक है, राष्ट्रपति एक है तो फिर कानून अलग-अलग क्यों ? कानूनों का बँटवारा धर्म के आधार पर कैसे हो सकता है ? और हमारे देश में यूनिफार्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता अब तक क्यों नही लागू हुई है ?
आइए इन सब सवालों पर विचार करने से पहले जान लें कि समान नागरिक संहिता है क्या? समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून है जो किसी भी देश के विभिन्न वर्गों, सम्प्रदायों व जातियों से आने वाले लोगों पर समान रूप से लागू होता है और देश के नागरिकों को धार्मिक व जातीय मामलों में समानता प्रदान करना ही इस कानून का लक्ष्य है।
वैसे तो यूनिफार्म सिविल कोड की बहस देश में बहुत पुरानी है। यह बहस अंग्रेजी शासन के समय से ही चली आ रही है। देश आजाद होने के बाद संविधान जब बना तो उसमें इसे लागू करने के प्रावधानों को संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में वर्णित किया गया और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में इसे लागू करने का लक्ष्य राज्यों के लिए रखा गया। लेकिन तब से लेकर आज तक केवल यह गोवा में ही लागू हो पाया है। बाकी राज्यों व देश में धार्मिक मामलों में अलग-अलग कानून प्रचलित हैं।
समान नागरिक कानून न होने के चलते देश में विभिन्न प्रकार की असमानताएँ व्याप्त हो गयीं जिनको समाप्त करने के लिए समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने भी समान नागरिक कानून लागू करने हेतु केंद्र सरकार को विचार करने हेतु कहा। अभी कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट के प्रस्ताव पर केन्द्र सरकार ने लॉ कमीशन को समान नागरिक संहिता के सभी पहलुओं पर जांच करने को कहा है। तभी से एक बार फिर समान नागरिक कानून पर पूरे देश में बहस जोर-शोर से जारी है। जहाँ एक ओर देश के सभी समुदाय इस कानून को लागू करने का समर्थन कर रहे हैं व इसे लागू करने हेतु सरकार के साथ खड़े हैं वहीं देश के तमाम कट्टरपंथी, मुल्ला- मौलवी इत्यादि इसके विरोध में खड़े हैं। इन विरोधियों का साथ तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले तमाम राजनैतिक दल व उनके नेता व छद्म धर्मनिरपेक्षवादी एवं वामपंथी लोग दे रहे हैं। कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवियों का कहना है कि वे शरीयत कानून में किसी भी प्रकार का बदलाव व दखल नहीं बर्दाश्त करेंगे। अगर शरीयत कानून उन्होंने छोड़ दिया तो वे इस्लाम से बेदखल हो जाएंगे। ये समान नागरिक कानून को हिंदू कानून के रूप में समझ रहे हैं जबकि समान नागरिक कानून का मूल ही पंथनिरपेक्षता व सभी प्रकार के धार्मिक भेदभावों को समाप्त कर देश के सभी नागरिकों को धार्मिक आधार पर समानता प्रदान करना है। विश्व के तमाम देशों में वर्तमान समय में यह कानून लागू है। पोलैंड, नार्वे, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, यूएसए, यूके, कनाडा, फ्रांस, चीन व रूस आदि इनमें प्रमुख हैं।
धर्म पर आधारित कानूनों से आजादी व तमाम तरह के भेदभावों को खत्म करने का एक मात्र रास्ता है कि समान कानून बनाए जाएँ। देश के प्रत्येक नागरिक को यह समझना चाहिए कि समान कानून लागू हो जाने से देश के सभी नागरिकों के साथ न्याय होगा साथ ही साथ हम संविधान की मूल भावना का सम्मान भी करेंगे जिसका समान नागरिक कानून न होने के कारण हम आजादी के बाद से ही अपमान करते आ रहे हैं। इसके साथ ही समान नागरिक कानून देश को विकास के रास्ते पर बढ़ाने वाला कदम साबित हो सकता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh