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देश की समस्याएँ एवं राजनेताओं से अपेक्षाएँ

अंतहीन
अंतहीन
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लोकतंत्र, जिसे जनतंत्र एवं प्रजातंत्र इत्यादि नामों से जाना जाता है, देश की जनता के लिए वरदान स्वरूप है, जिसकी व्यवस्था संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान के माध्यम से राजशाही व तानाशाही इत्यादि को खत्म करने के लिए की गई। ऐसी व्यवस्था इसलिए भी की गई ताकि समाज का कोई भी व्यक्ति, चाहे वह औद्योगिक घराने से सम्बन्ध रखता हो या फिर किसी गरीब परिवार से, जो नेतृत्व करना चाहे या प्रतिनिधित्व करना चाहे तो उसे भी अवसर प्राप्त हो सके। लोकतंत्र में सत्ता पक्ष है, तो विपक्ष भी है। सत्ता पक्ष मनमानी करे, या गलत निर्णय करे या गलत दिशा में काम करे, तो उसके गलत निर्णयों एवं कामों के लिए सत्ता पक्ष को रोकना एवं उसकी आलोचना करना विपक्ष का कर्तव्य होता है। चुनाव लोकतंत्र में उत्सव होते हैं और इन्हीं उत्सवों के माध्यम से जनता अपने नेतृत्वकर्ता या प्रतिनिधि का चयन करती है।

5 जनवरी 2017 को चुनाव आयोग द्वारा देश के पाँच राज्यों, उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर, में में विधानसभा चुनावों की घोषणा की गई। जिनमें से पंजाब, उत्तराखंड, गोवा में मतदान हो चुके हैं। उत्तरप्रदेश में छठे व सातवें चरण का व मणिपुर में दोनों चरणों का मतदान होना अभी शेष है। विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही राजनैतिक दलों ने अपने-अपने चुनावी एजेण्डों को जनता के समक्ष रखा व प्रचार-प्रसार व जनसभाएँ आरम्भ कर दीं और इसी के साथ राजनेताओं एवं राजनैतिक दलों द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया। आरोप-प्रत्यारोप जब कार्यों एवं उपलब्धियों को लेकर लगें तो ये उचित होता है लेकिन उन आरोप-प्रत्यारोपों में अमर्यादित एवं अशोभनीय टिप्पणियाँ की जाने लगी तो ये लोकतंत्र में चिंता का विषय बन जाता है।

वर्तमान विधानसभा चुनावों में भी राजनेताओं द्वारा एक-दूसरे पर ओंछी, अमर्यादित व अशोभनीय टिप्पणियाँ की जा रही हैं। गधे, पागल, सनकी, कसाब, आतंकी, जैसे शब्दों का प्रयोग राजनेताओं द्वारा एक-दूसरे के लिए किया जा रहा है। क्या ऐसी टिप्पणियों के अलावा और विषय नहीं हैं जिन पर ये राजनेता बात कर सकें? क्या इन राजनेताओं के पास बात करने के लिए और मुद्दे नहीं बचे, जिन पर ये बात कर सकें?
आज भी देश में कुल आबादी के लगभग 30 प्रतिशत लोग गरीबी में जीवन-यापन कर रहे हैं। आज भी देश की अधिकांश आबादी अभाव में ही जीवन-यापन कर रही है, क्या ये राजनेता उन गरीबों एव अभाव में जी रहे लोगों की बात नहीं कर सकते?

हमारा देश बेरोजगारी के मामले में विश्व में 104वें स्थान पर है। आज भी देश में 12 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, जिनमें 25 प्रतिशत 20 से 24 आयुवर्ग के लोग हैं, जबकि 25 से 29 आयुवर्ग वाले 17 प्रतिशत लोग हैं। 20 वर्ष से ज्यादा आयु के 14.30 करोड़ युवाओं की रोजगार की तलाश है। तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले 16 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। क्या ये राजनेता बेरोजगारों की बात नहीं कर सकते?

देश के लगभग 60 प्रतिशत किसान आज भी गरीबी में जीवन निर्वासित करने को मजबूर हैं, जिनकी रोजाना की आमदनी 20 रुपये से भी कम है। देश के प्रत्येक किसान परिवार पर लगभग 47000 हजार रुपये का कर्ज है। उत्तरप्रदेश के लगभग 40 प्रतिशत किसान कर्जदार हैं। तमाम तरह की मुश्किलों एवं विषमताओ के चलते लगभग 15000 किसान प्रतिवर्ष देश में आत्महत्या करने को मजबूर हैं। क्या देश के राजनेता इन कर्जदार, गरीब एवं आत्महत्या करने वाले किसानों की बात नहीं कर सकते?

आज भी देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं है, प्रतिदिन हजारों की तादाद में उनके साथ दरिंदगी, एवं उत्पीड़न की घटनाएँ घटित होती हैं। बेटियों को भ्रूण में ही मार दिया जाता है। क्या ये राजनेता देश में महिलाओं की सुरक्षा की बात नहीं कर सकते?

देश में प्रतिवर्ष जितने लोग मर्डर, रंजिश इत्यादि में मारे जाते हैं, उससे ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर जाते हैं। क्या सड़क दुर्घटनाओं एवं अपराधों में अपनी जान गंवाने लोगों की बात नही कर सकते हमारे देश के राजनेता?

साक्षरता एवं शिक्षा के मामले में आज भी हमारी गिनती दुनिया के पिछड़े देशों में होती है। 74 प्रतिशत लोग ही साक्षर हैं जो विश्व की औसत साक्षरता दर 85 प्रतिशत से बहुत कम है। देश में निरक्षर वयस्कों की संख्या लगभग 28.70 करोड़ है, जो वैश्विक संख्या का 37 प्रतिशत है। आज भी हमारे पास देश की स्वतंत्रता के 67 वर्षों बाद कोई एक उत्तम शिक्षा नीति नहीं है। देश के शिक्षा संस्थानों की स्थिति बदहाल है। देश में शिक्षकों की कमी है। क्या देश के राजनेता बदहाल शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा नीति व साक्षरता की बात नहीं कर सकते?

इस तरह के तमाम सवाल देश के लोगों में बैठे है और तमाम समस्याएं आज भी हमारे देश में व्याप्त हैं, जिन पर काम किया जा सकता है, जिनके निराकरण की बात राजनेताओ द्वारा की जा सकती है और देश के लोगों का समर्थन किया जा सकता है। लेकिन ये राजनेता अपनी अमर्यादित, अशोभनीय, एवं भाषा से आगे ही नहीं बढ़ पाते हैं। पता नहीं वो समय कब आएगा जब हमारे राजनेता देशवासियों के मन की बात करेंगे उनकी समस्याओं की बात करेंगे, उनकी पीड़ाओं की बात करेंगे।

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